जाओ मेरे प्यार गुलाब
उससे कह देना तुम जाकर कि
गुम हो रहे हैं पल-पल, छिन-छिन
क्या ...अब वह नहीं जानती कि
जब भी मैं कहता हूँ उसे - प्यारे गुलाब!
महकने लगती है जैसे - खुद ही हो गुलाब !
****
जाओ मेरे प्यारे गुलाब !
उससे कह देना तुम जाकर कि
सुमन, सुधा, सुकेशा, सुनयना है वह
सहेजा है यौवन जिसने, स्याह नजरों से बचाके=
रति रंग सजे अंग-अंग, इस देह के वीराने
जो तन था एक शून्य बिना प्रेम भ्रमर के
रीता था यह रति धनु, बिना काम बाण के
****
चाहे तो तुम फिर मुरझा जाना गुलाब !
तुम्हारी आँखों में ही पढ़ लेगी ख्वाब
कि कितने कम थे प्रगाढ़ता के वे पल
कली के खिलने और मुरझाने के बीच
कितने अदभुत ! महकते रहे साँसों के बीच
सावन में सारिका के सुरों से गए सींच